एक की उम्र 5 साल और दूसरे की 7 साल। साहिबजादे जोरावर सिंघ और साहिबजादे फ़तेह सिंघ को गिरफ्तार करके सूबा सरहिंद की कचहरी में लाया गया। उनको कहा गया कि आपके पिता शहीद हो चुके है। आप इस्लाम कबूल करलो। उन्हें हूरों का लालच दिया गया।लेकिन दोनों अडिग रहे, वो नही माने। सूबा तो […]

एक की उम्र 5 साल और दूसरे की 7 साल। साहिबजादे जोरावर सिंघ और साहिबजादे फ़तेह सिंघ को गिरफ्तार करके सूबा सरहिंद की कचहरी में लाया गया। उनको कहा गया कि आपके पिता शहीद हो चुके है। आप इस्लाम कबूल करलो। उन्हें हूरों का लालच दिया गया।लेकिन दोनों अडिग रहे, वो नही माने। सूबा तो पहले ही आग बबूला हो गया था जब दोनों साहिबजादों ने कचहरी में पहुँचते ही सलाम की जगह सिखजयकारा बोला था उनसे पूछा गया कि ” अगर हम आपको रिहा कर दें तो तुम दोनों क्या करोगे ?”

उनका जवाब था ” हमें पहले तो ये उम्मीद ही नही कि तुम हमको छोड़ दोगे , अगर छोड़ दिया तो बाहर जाके फिर से सिखों की फ़ौज खड़ी करेंगे , और तेरे जुल्म के साथ तब तक लड़ते रहेंगे जब तक हम शहीद न हो जाएं या तुम सुधर न जाओ “I

अब ये पक्का हो चूका था कि बच्चे अपने महान पिता श्री गुरु गोबिंद की ही तरह मजबूत है इनको किसी भी तरीके से इस्लाम में नही लाया जा सकता।
फिर जब कोई और चारा न चला तो आखिर में उन्हें डराया , धमकाया भी गया। उन्हें भूखा प्यासा रखा गया , दिसंबर की सर्दी में। लेकिन इस्लाम इनके जज्बे के आगे बेबस था।

मेरे गोबिंद के लाल तो अडिग थे , उन्हें जन्म से ही वीरता और बलिदान का इतिहास सुनाया गया था। उन्हें बताया गया था की उनके दादा गुरु तेग़ बहादुर जी ने कैसे बलिदान दिया था। उनके पूर्वज गुरु अर्जुन देव जी ने कैसे जुल्म का सामना किया था। आखिरकार 26 दिसंबर 1705 को दोनों साहिबजादों को इस्लाम कबूल न करने के लिए जिन्दा ही दीवार में चुनवा दिया गया।

इस उम्र में जब माँ बाप अपने बालको को घर से बहार कदम नही रखने देते। मेरे गोबिंद के लाल हँसते हुए भारतवर्ष की लाज बचाने के लिए शहीद हो गए थे। अगर सत्य और बलिदान से भरा ये इतिहास आज भारतवर्ष के बच्चो को पढ़ाया जाये तो आपको क्या लगता है हमारे बच्चो का मनोबल कितना ऊँचा होगा।
मुझे मेरे पूर्वजो पे बहुत गर्व है और उस दिन का इंतज़ार भी जब मुझे भी उनके पदचिन्हो पे चलने का सौभाग्य मिलेगा।

बोले सो निहाल , सत श्री अकाल।

डॉ कुलवीर सिंह।