हमने कितने दाग लगाए सम्मानों की पगड़ी पर सारे पुरस्कार थोड़े है बलिदानो की पगड़ी पर थोड़ी सी आबादी है पर सुविधा सभी नही मांगी आरक्षण की बैसाखी भी जिसने कभी नहीं मांगी जो सप्ताह के सातो दिन बस मेहनत की खाता है चाहे कोई ढाबा खोले या फिर ट्रक चलाता है उन्हें सताने वाले […]

हमने कितने दाग लगाए सम्मानों की पगड़ी पर
सारे पुरस्कार थोड़े है बलिदानो की पगड़ी पर
थोड़ी सी आबादी है पर सुविधा सभी नही मांगी
आरक्षण की बैसाखी भी जिसने कभी नहीं मांगी
जो सप्ताह के सातो दिन बस मेहनत की खाता है
चाहे कोई ढाबा खोले या फिर ट्रक चलाता है
उन्हें सताने वाले लोगो मैं कहता धिक्कार तुम्हे
मूर्ख बताने वाले लोगो मैं कहता धिक्कार तुम्हे
 
आज चलो बलिदानी पगड़ी की बातें बतलाता हूँ
सिख धर्म के बलिदान की सारी कथा बताता हूँ
सिक्खों के एहसान है इतने कैसे कलम चलाऊंगा
 
सातो सागर स्याही कर दूँ फिर भी ना लिख पाउँगा
जिन बेटो ने बलिदानी इतिहास बना के डाल दिया
उन बेटो को हमने बस उपहास बना के डाल दिया
गुरु नानक ने पगड़ी सौंपी देश धरम की रक्षा हो
दूर हटे पाखण्डवाद जन जन की यहाँ सुरक्षा हो
 
गुरु तेग़ बहादुर से मिलने को कुछ कश्मीरी आये थे
मुस्लिम अत्याचारो से वे सारे ही घबराये थे
कश्मीरी बोले परेशान है गुरु जी दहशतगर्दी से
मुस्लिम सबको बना रहा औरंगज़ेब नामर्ज़ी से
 
सोचा गुरु ने और कहा कीमत भारी चुकानी है
भारत देश माँग रहा इस समय बड़ी क़ुरबानी है
सब शेरो से बोलो की अब हाथों में हथियार रखे
और पिता से बोलो की बेटों की अर्थी तैयार रखे
धन दौलत और घनी सम्पदा देश धर्म के नाम करें
माओं से भी बोलो की अब निज बेटों का भी दान करें
एक पतंगा गुरु के दिल के भीतर तक भी चला गया
हुए रौंगटे खड़े गुरु के हाथ कृपाण पर चला गया
पी कर गुस्सा पल भर में ही तेग बहादुर हो गए मौन
लम्बी साँस खींच कर बोले बड़ी क़ुरबानी देगा कौन
 
बात हुई कुछ ऐसी उस दिन धरती अंबर डोल गए
नौ साल के गुरु गोबिंद जी सबके सामने बोल गए
कहा पिता जी उस शव पर भारत की नींव खड़ी होगी
औरंगजेब से आप लड़ो क़ुरबानी बहुत बड़ी होगी
 
मै अब भी शीश झुकाता हूँ उस दिल्ली के गलियारे में
जहाँ गुरु का शीश गिरा था शीशगंज गुरूद्वारे में