अनोखी आस्था : यहाँ कुलदेवता के रूप में हैं गुरु गोबिंद सिंह गुरुद्वारा नहीं, मंदिर में होती है पूजा भीम सिंह चौहान , चकराता (देहरादून) भगवान को जिस रूप में भजो, उसी रूप में उनका साक्षात्कार हो जाता है। उत्तराखंड का जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र इसका जीता जागता उदाहरण है। न गुरुद्वारा, न ग्रंथी लेकिन […]
अनोखी आस्था : यहाँ कुलदेवता के रूप में हैं गुरु गोबिंद सिंह
गुरुद्वारा नहीं, मंदिर में होती है पूजा
भीम सिंह चौहान , चकराता (देहरादून)
भगवान को जिस रूप में भजो, उसी रूप में उनका साक्षात्कार हो जाता है। उत्तराखंड का जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र इसका जीता जागता उदाहरण है। न गुरुद्वारा, न ग्रंथी लेकिन इस इलाके के 17 वी सदी के पौराणिक मंदिर में ढ़ौल नगाड़ो की थाप पर गुरु गोविंद सिंह महाराज की पूजा अर्चना होती है। संभवतः यह देश का अकेला क्षेत्र होगा जहां सीखो के दसवें गुरु कुलदेवता की तरह पूजे जाते हैं।
अपनी अलग संस्कृति के लिए प्रसिद्ध जौनसार बावर की धार्मिक मान्यताओं में भी ऐसा अनूठापन है, जो शायद ही कहीं देखने को मिलता हो। पुरे देश में शिव, विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण इष्ट माना है, लेकिन जौनसार के 359 गांव और डेढ़ सौ मजरों के करीब डेढ़ लाख से लोग महासू , परशुराम, विजट, शिलगुर, चुडू आदि को इष्टदेव के रूप में पूजते है , जबकि कालसी के अत्लेउ गांव में गोविन्द सिंह महाराज कुलदेवता है। मंदिर के वजीर सुपाराम राणा व् भंडारी राय सिंह के अनुसार 16 वीं सदी में जब लोगो की सन्तानो की अकाल मृत्यु की घटनाए बढ़ गयी और सुख समृद्धि को ग्रहण लग गया, तब गुरु महाराज की कृपा से ही गांव मेँ सुख समृद्धि लौटी। उसके बाद उनकी सुबह शाम पूजा शुरू हुई। 11 पीढ़ियों से गांव में गुरु महाराज की सेवा का क्रम अनवरत चला आ रहा है। गुरु महाराज के देवमाली (पुजारी) लोगो के दुःख दर्द दूर करने को प्रश्न लगाते है और गुरमुखी में ही जवाब देकर निदान भी करते है। स्थानीय पाराचिनार बिरादरी के अनिल चानना के मुताबिक हर परिवार का पहला बेटा गुरु महाराज का भक्त होता है और केश नहीं कटवाता। अतलेऊ मंदिर में गुरु महाराज की पूजा अर्चना अनूठी धार्मिक परंपरा का अकेला उदाहरण है। अतलेऊ मंदिर के पुजारी मातबर सिंह राणा बताते है दसवें साल में अमृतसर की पदयात्रा कर महाराज श्री के शाही स्नान की परम्परा है। गुरु महाराज का पिछला शाही स्नान 2007 में अमृतसर में कराया गया था। इसके अलावा प्रत्येक तीसरे वर्ष पौंटा साहिब व् आठवें वर्ष हेमकुंड साहिब के दर्शन करने जाते है। रोजाना दो बार पूजा होती है ताकि लोग कुलदेवता के दर्शन क्र आशीर्वाद ले सके।