आनंदपुर में सिक्ख संगत ने अपने अपने डेरों में लंगर लगाए हुए थे| गुरू जी ने जब इनकी शोभा सुनी कि गुरु की नगरी में आने वाला कोई भी रोटी से भूखा नहीं रहता तो एक दिन रात के समय गुरु जी आप एक गरीब सिक्ख का वेष धारण करके इनकी परीक्षा लेने चल पड़े| […]

आनंदपुर में सिक्ख संगत ने अपने अपने डेरों में लंगर लगाए हुए थे| गुरू जी ने जब इनकी शोभा सुनी कि गुरु की नगरी में आने वाला कोई भी रोटी से भूखा नहीं रहता तो एक दिन रात के समय गुरु जी आप एक गरीब सिक्ख का वेष धारण करके इनकी परीक्षा लेने चल पड़े|

एक सिक्ख के डेरे पर जाकर आपने कहा हमें जल्दी भोजन दो, भूख लगी है| उसने कहा कुछ देर बैठ जाओ. भोजन तैयार हो रहा है, मिल जाएगा उससे हटकर आप जी दूसरे सिख के डेरे गए और वहाँ भी भोजन माँगा परन्तु उसने कहा दाल भाजी तैयार हो रही है, फिर आकर भोजन छक लेना फिर इसके पश्चात् गुरु जी तीसरे व चौथे सिख के डेरे भोजन के लिए गए तो एक ने कहा ”आनन्द साहिब” का पाठ तथा अरदास करके लंगर बटेगा दूसरे ने कहा सारी संगत एकत्रित हो जाए, तो पंक्ति लगाकर लंगर बाँटा जाएगा,

आप बैठ जाओ इसके पश्चात् आप जी भाई नन्द लाल जी के डेरे भोजन के लिए गए आप ने वहाँ जाकर भी भोजन माँगा भाई के पास जो कुछ तैयार था गुरु जी के आगे लाकर रख दिया गुरु जी छक कर बहुत प्रसन्न हुए और अपने महलों में आ गए दूसरे दिन जब सिखों के लंगर की बातें चली तो गुरु जी ने अपनी रात की सारी वार्ता सुनाकर बताया की हमे केवल भाई नन्द लाल के लंगर से ही भोजन मिला है बाकी सबने कोई ना कोई बात करके हमें लंगर नहीं छकाया जो सिख भूखे को शीघ्र ही भोजन देने का यत्न करता है, वही सिख हमें प्यारा है भूखे को रोटी-पानी देने के लिए कोई समय नहीं विचारना चाहिए जिस अन्न के दाने से प्रण बच जाते है, उसका पुण्य फल सभी दानों से अधिक है

सतिगुरु जी की तरफ से अन्न दान महिमा सुनकर सबने प्रण कर लिया कि आगे से किसी को भूखा नहीं भेजा जाएगा