सितंबर 1897 में ब्रिटिश-इंडियन आर्मी की तरफ से अफगानिस्तान के नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर स्थित सारागढ़ी के मैदान में 14,000 अफगानों से लोहा लेने वाले 36 सिख रेजिमेंट के 21 जवानों की शौर्यगाथा को बड़े पर्दे पर उतारा जाएगा। फिल्म “चाइना गेट फेम राज कुमार संतोषी द्वारा बनाई जा रही इस फिल्म का ऑडिशन 8 अगस्त को […]
सितंबर 1897 में ब्रिटिश-इंडियन आर्मी की तरफ से अफगानिस्तान के नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर स्थित सारागढ़ी के मैदान में 14,000 अफगानों से लोहा लेने वाले 36 सिख रेजिमेंट के 21 जवानों की शौर्यगाथा को बड़े पर्दे पर उतारा जाएगा। फिल्म “चाइना गेट फेम राज कुमार संतोषी द्वारा बनाई जा रही इस फिल्म का ऑडिशन 8 अगस्त को अमृतसर में लिया जाना है। जानिए, 21 सिखों के साहस और वीरता की कहानी…
21 सिखों के साहस और वीरता की ये है कहानीः
-सारागढ़ी उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में स्थित था, जिसे अब पाकिस्तान स्थित खैबर पख्तूनवा के नाम से जाना जाता है।
-इन इलाकों में आदिवासी पश्तून समय-समय पर ब्रिटिश सैनिकों पर हमला करते रहते थे।
-इससे बचने के लिए अंग्रेजों ने वहां कई किले स्थापित किए। इनमें से लॉकहार्ट किला और गुलिस्तान किले के बीच कुछ मीलों की दूरी थी।
-इन दोनों किले पर एक साथ नजर रखी जा सके, इसके लिए दोनों किलों के बीच सारागढ़ी पोस्ट की स्थापना की गई।
-सारागढ़ी चट्टानी चोटी पर स्थित था और उसमें सैनिक पोस्ट के साथ-साथ एक सिग्नलिंग टावर भी लगा था।
सारागढ़ी के किले पर कब्जे के लिए कई हमले हुए…
27अगस्त से 11 सितंबर 1897 के बीच पश्तूनों ने सारागढ़ी के किले पर कब्जे के लिए कई हमले किए, लेकिन 36वीं सिख रेजिमेंट ने हर बार उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। १२ सितंबर १८९७ को 10 हजार पश्तूनों या पठानों ने सारागढ़ी के सिग्नलिंग पोस्ट पर हमला किया, जिससे लॉकहार्ट और गुलिस्तान के किलों के बीच संपर्क टूट जाए। लेकिन इसके बाद जो हुआ उसे इतिहास में २१ सिख सैनिकों की वीरता की दास्तां के तौर पर हमेशा याद रखा जाएगा।
क्या हुआ था 12 सितंबर 1897 को:
इस दिन सुबह ९ बजे सारागढ़ी के सिग्नलिंग पोस्ट की कमान संभाल रहे ३६वीं सिख रेजिमेंट के गुरुमुख सिंह ने लॉकहार्ट के किल में कर्नल हॉटेन को इस हमले की जानकारी दी। लेकिन कर्नल ने तुरंत मदद मुहैया करा पाने में असमर्थता जता दी। इसके बाद सारागढ़ी के किले में ३६वीं सिख रेजिमेंट के २१ सिख सैनिकों ने हवलदार ईशहर सिंह के नेतृत्व में हमलावरों को मुंह तोड़ जवाब देने का निर्णय लिया।
वीर सैनिक की शहादत से बड़ी जीत कैसे हो गई :
सबसे पहले शहीद हुए भगवान सिंह. अफगानी सैनिकों ने सिख सैनिकों को आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव दिया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इस बीच अफगानी सैनिकों ने दो बार किले का गेट खोलने का प्रयास किया लेकिन नाकाम रहे। इसके बाद दीवार को उड़ा दिया गया। फिर हुई दोनों तरफ के सैनिकों के बीच आमने-सामने की जंग।
एक ऐसी जंग जिसकी मिसाल शायद दुनिया के किसी और युद्ध के मैदान में मिलती हो। १० हजार की विशाल सेना के सामने मुट्ठी भर २१ सिख। लेकिन इन वीर सिख सैनिकों ने अफगानी सैनिकों की हालत खराब कर दी। जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल की हुंकार के साथ सिख सैनिक विशाल अफगानी सेना पर टूट पड़े और एक-एक सिख सैनिक दस-दस अफगानी सैनिकों पर भारी पड़ा। ईशर सिंह के नेतृत्व में सिख सैनिक पूरी वीरता के साथ लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए, सिग्नलिंग पोस्ट संभाल रहे गुरुमुख सिंह शहीद होने वाले आखिरी सिख सैनिक थे। कहा जाता है उन्होंने अकेले ही 20 अफगानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।
600 अफगानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था…
आखिर में २१ सिख सैनिकों के शहीद होने के बाद अफगानी सैनिकों ने सारागढ़ी के किले को तबाह कर दिया। इसके बाद वह गुलिस्तान के किले की ओर मुड़े लेकिन सिख सैनिकों से पार पाने में उन्हें इतना वक्त लग गया कि १३-१४ सितंबर की रात को मदद के लिए और अंग्रेजी सैनिक आ गए और अफगानी गुलिस्तान के किले को नहीं जीत पाए। पश्तूनों ने बाद में माना कि २१ सिख सैनिकों के साथ लड़ाई में उनके 180 सैनिक शहीद हुए। लेकिन जब बचाव दल पहुंचा तो उसने सारागढ़ी के किले के आसपास 600 से ज्यादा लाशें देखी, जिससे पता चलता है कि उन 21 वीर सैनिकों ने करीब 600 अफगानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। 14 सितंबर को जवाबी कार्रवाई करते हुए अंग्रेजों ने सारागढ़ी पर फिर से कब्जा कर लिया।
-Source: Dainik Bhaskar